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दिल के पर्दे पे चेहरे उभरते रहे मुस्कुराते रहे और हम सो गए | शाही शायरी
dil ke parde pe chehre ubharte rahe muskuraate rahe aur hum so gae

ग़ज़ल

दिल के पर्दे पे चेहरे उभरते रहे मुस्कुराते रहे और हम सो गए

इरफ़ान सत्तार

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दिल के पर्दे पे चेहरे उभरते रहे मुस्कुराते रहे और हम सो गए
तेरी यादों के झोंके गुज़रते रहे थपथपाते रहे और हम सो गए

याद आता रहा कूचा-ए-रफ़्तगाँ सर पे साया-फ़गन हिज्र का आसमाँ
ना-रसाई के सदमे उतरते रहे दिल जलाते रहे और हम सो गए

हिज्र के रत-जगों का असर यूँ हुआ वस्ल-ए-जानाँ का लम्हा बसर यूँ हुआ
दोश पर उस के गेसू बिखरते रहे गुदगुदाते रहे और हम सो गए

कैसे तजदीद-ए-अहद-ए-वफ़ा कीजिए ग़म मज़ा दे रहे हैं सो क्या कीजिए
दर पे आ के वो अक्सर ठहरते रहे खटकाते रहे और हम सो गए

अव्वल अव्वल तो हर शब क़यामत हुई रफ़्ता रफ़्ता हमें ऐसी आदत हुई
घर के आँगन में ग़म रक़्स करते रहे ग़ुल मचाते रहे और हम सो गए