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दिल के आते ही ये नक़्शा हो गया | शाही शायरी
dil ke aate hi ye naqsha ho gaya

ग़ज़ल

दिल के आते ही ये नक़्शा हो गया

नसीम देहलवी

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दिल के आते ही ये नक़्शा हो गया
क्या बताऊँ दोस्तो क्या हो गया

तुम ने फ़ुर्सत पाई घर बैठे तबीब
मर गया बीमार अच्छा हो गया

कर चुका था काम अफ़्सून-ए-रक़ीब
आज हम से उन से परछा हो गया

उन पे दिल आया बड़ी मुश्किल पड़ी
मुद्दई' पहलू में पैदा हो गया

हाए बेताबी ने मेरी क्या किया
हाल सब उन पर हुवैदा हो गया

एक ज़ालिम पर तबीअत आ गई
फिर वही अब हाल मेरा हो गया

शुक्र है पैदा किया ख़ालिक़ ने जिस्म
रूह का कुछ दिन को पर्दा हो गया

खुल गए ज़ख़्मों के मुँह अच्छा हुआ
दर्द के बढ़ने को रस्ता हो गया

तू ही चल ऐ रूह जोश-ए-शौक़ है
ख़त के आने में तो अर्सा हो गया

वक़्त-ए-बद कुछ पूछ कर आता नहीं
हँसते हँसते उन से झगड़ा हो गया

हाल क्यूँ अबतर है इस दर्जा 'नसीम'
सच कहो दिल किस पे शैदा हो गया