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दिल के आईने में नित जल्वा-कुनाँ रहता है | शाही शायरी
dil ke aaine mein nit jalwa-kunan rahta hai

ग़ज़ल

दिल के आईने में नित जल्वा-कुनाँ रहता है

शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान

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दिल के आईने में नित जल्वा-कुनाँ रहता है
हम ने देखा है तू ऐ शोख़ जहाँ रहता है

कोई दिन घर से न निकले है अगर वो ख़ुर्शीद
मुंतज़िर शाम तलक एक जहाँ रहता है

झाड़ दामन के तईं मार के ठोकर निकले
कहीं रोके से भी वो सर्व-ए-रवाँ रहता है

गाहे माहे ऐ मह-ए-ईद इधर भी तो गुज़र
रोज़ ओ शब बज़्म में तेरा ही बयाँ रहता है

बावजूद-ए-कि मुझे रब्त-ए-दिली है उस से
ये न पूछा कभू 'ईमान' कहाँ रहता है