दिल का हर दर्द खो गया जैसे
मैं तो पत्थर का हो गया जैसे
दाग़ बाक़ी नहीं कि नक़्श कहूँ
कोई दीवार धो गया जैसे
जागता ज़ेहन ग़म की धूप में था
छाँव पाते ही सो गया जैसे
देखने वाला था कल उस का तपाक
फिर से वो ग़ैर हो गया जैसे
कुछ बिछड़ने के भी तरीक़े हैं
ख़ैर जाने दो जो गया जैसे
ग़ज़ल
दिल का हर दर्द खो गया जैसे
जावेद अख़्तर