EN اردو
दिल का गिला फ़लक की शिकायत यहाँ नहीं | शाही शायरी
dil ka gila falak ki shikayat yahan nahin

ग़ज़ल

दिल का गिला फ़लक की शिकायत यहाँ नहीं

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

;

दिल का गिला फ़लक की शिकायत यहाँ नहीं
वो मेहरबाँ नहीं तो कोई मेहरबाँ नहीं

हम आज तक छुपाते हैं यारों से राज़-ए-इश्क़
हालाँकि दुश्मनों से ये क़िस्सा निहाँ नहीं

ज़ेबा नहीं है दोस्त से करना मोआमला
कुछ वर्ना नाज़ जान के बदले गिराँ नहीं

हम ज़ुमरा-ए-रक़ीब में मिल कर वहाँ गए
जब शौक़ रहनुमा हो कोई पासबाँ नहीं

आशुफ़्ता मिस्ल-ए-बाद हूँ बेताब मिस्ल-ए-बर्क़
क्यूँकर मुईन-ए-चर्ख़ तिरी शोख़ियाँ नहीं

हम आप पर निसार करें काएनात को
पर क्या करें बिसात में जुज़ नीम-जाँ नहीं

सामान-ए-वज्द फ़ित्ना-ए-महशर को दे दिया
वो ख़ाक पर हमारी जो दामन-कशाँ नहीं

क्यूँ हैं नदीम-ए-दोस्त सिफ़ारिश में ग़ैर की
क्या हम को उन से रस्म-ओ-रह-ए-अरमुग़ाँ नहीं

इक हाल-ए-ख़ुश में भूल गए काएनात को
अब हम वहाँ हैं मुतरिब ओ साक़ी जहाँ नहीं

किस किस पे रश्क कीजिए किस किस को रोइए
किस दिन वो जल्वा आफ़त-ए-सद-ख़ानुमाँ नहीं

क्यूँ ये हुजूम-ए-शोर-ओ-शग़ब है नुशूर में
ऐसा तो 'शेफ़्ता' हमें ख़्वाब-ए-गिराँ नहीं