दिल जल के रह गए ज़क़न-ए-रश्क-ए-माह पर
इस क़ाफ़िला को प्यास ने मारा है चाह पर
गेसू को नाज़ है दिल-ए-रौशन की चाह पर
परवाना ये चराग़ है मार-ए-सियाह पर
नींद उड़ गई गिराँ है ये शब रश्क-ए-माह पर
बिजली न क्यूँ फ़लक से गिरे मेरी आह पर
है याद ख़ुफ़्तगान-ए-ज़मीं का जो ख़त्त-ए-सब्ज़
भूले से मैं क़दम नहीं रखता गियाह पर
लुटता है ख़ाना-ए-दिल-ए-आशिक़ बचाइए
बिगड़ी हुई है फ़ौज-ए-मिज़ा किस गुनाह पर
तासीर का है ख़ौफ़ उन्हें ऐन शौक़ में
है दिल पे हाथ कान हैं आवाज़-ए-आह पर
महशर बपा है बंद हैं कुश्तों के रास्ते
क़द बाढ़ पर है बाढ़ है तेग़-ए-निगाह पर
क्या आदमी की ख़ाक को रौंदूँ मैं रहम-दिल
रोता है पाएमाली-ए-मर्दुम-गियाह पर
कहते हो किस के क़ल्ब में उठता है शब को दर्द
रोता है दिल मिरा मिरे हाल-ए-तबाह पर
आख़िर तलाश-ए-गोर हुई दिल को इश्क़ में
बरसों तबाह हो के अब आया है राह पर
दिल के मुआमले में न हो दख़्ल ग़ैर को
लेना जो हो तो लीजिए अपनी निगाह पर
ऊपर की साँस लेने का आज़ार हो गया
जिस की नज़र पड़ी तिरी तिरछी निगाह पर
बख़िया जराहत-ए-दिल-ए-नाज़ुक-मिज़ाज का
मौक़ूफ़ है हुज़ूर के तार-ए-निगाह पर
ग़ज़ल
दिल जल के रह गए ज़क़न-ए-रश्क-ए-माह पर
तअशशुक़ लखनवी