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दिल हुआ है मिरा ख़राब-ए-सुख़न | शाही शायरी
dil hua hai mera KHarab-e-suKHan

ग़ज़ल

दिल हुआ है मिरा ख़राब-ए-सुख़न

वली मोहम्मद वली

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दिल हुआ है मिरा ख़राब-ए-सुख़न
देख कर हुस्न-ए-बे-हिजाब-ए-सुख़न

बज़्म-ए-मा'नी में सरख़ुशी है उसे
जिस कूँ है नश्शा-ए-शराब-ए-सुख़न

राह-ए-मज़मून-ए-ताज़ा बंद नहीं
ता-क़यामत खुला है बाब-ए-सुख़न

जल्वा-पैरा हो शाहिद-ए-मा'नी
जब ज़बाँ सूँ उठे नक़ाब-ए-सुख़न

गौहर उस की नज़र में जा न करे
जिन ने देखा है आब-ओ-ताब-ए-सुख़न

हर्जा़-गोयाँ की बात क्यूँकि सुने
जो सुना नग़्मा-ए-रबाब-ए-सुख़न

है तिरी बात ऐ नज़ाकत-ए-फ़हम
लौह-ए-दीबाचा-ए-किताब-ए-सुख़न

है सुख़न जग मनीं अदीम-उल-मिसाल
जुज़ सुख़न नीं दुजा जवाब-ए-सुख़न

ऐ 'वली' दर्द-ए-सर कभू न रहे
जब मिले सन्दल-ओ-गुलाब-ए-सुख़न