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दिल है तो तिरे वस्ल के अरमान बहुत हैं | शाही शायरी
dil hai to tere wasl ke arman bahut hain

ग़ज़ल

दिल है तो तिरे वस्ल के अरमान बहुत हैं

हफ़ीज़ जौनपुरी

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दिल है तो तिरे वस्ल के अरमान बहुत हैं
ये घर जो सलामत है तो मेहमान बहुत है

मैं दाद का ख़्वाहाँ नहीं ऐ दावर-ए-महशर
आज अपने किए पर वो पशेमान बहुत हैं

दिल ले के खिलौने की तरह तोड़ न डालें
डर मुझ को यही है कि वो नादान बहुत हैं

वो फूल चढ़ाते हैं दबी जाती है तुर्बत
मा'शूक़ के थोड़े से भी एहसान बहुत हैं

तुम को न पसंद आए न लो फेर दो मुझ को
इस दिल के ख़रीदार मिरी जान बहुत हैं

डाँटा कभी ग़म्ज़े ने कभी नाज़ ने टोका
ख़ल्वत में भी साथ उन के निगहबान बहुत हैं

ख़ाली भी कोई दिल है वहाँ इश्क़-ए-सनम से
कहने को तो का'बे में मुसलमान बहुत हैं

शायद ये असर हो मेरी आह-ए-सहरी का
कुछ सुब्ह से वो आज परेशान बहुत हैं

क्या शब को 'हफ़ीज़' उन से यहीं वस्ल की ठहरी
आज आप के घर ऐश के सामान बहुत हैं