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दिल है तिरे प्यार करने कूँ | शाही शायरी
dil hai tere pyar karne kun

ग़ज़ल

दिल है तिरे प्यार करने कूँ

आबरू शाह मुबारक

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दिल है तिरे प्यार करने कूँ
जी है तुझ पर निसार करने कूँ

इक लहर लुत्फ़ की हमें बस है
ग़म के दरिया सूँ पार करने कूँ

चश्म मेरी है अब्र-ए-नीसानी
गिर्या-ए-ज़ार-ज़ार करने कूँ

चश्म नीं अनझुवाँ की बस्ती की
ज़ुल्म तेरा शुमार करने कूँ

रश्क सीं जब कोई छुए वो ज़ुल्फ़
दिल उठे मार मार करने कूँ

इस अदा सूँ लटक लटक मत आ
दिल मिरा बे-क़रार करने कूँ

नाँव कूँ गरचे तू ममूला है
बाज़ है दिल शिकार करने कूँ

क्या करूँ किस से जा लगाऊँ घात
'आबरू' उस के यार करने कूँ