दिल है रौशन कि है दिल में रुख़-ए-रौशन उन का
ज़ेर-ए-फ़ानूस-ए-बदन शम्अ' है जोबन उन का
दीद उन की है विसाल उन का तसव्वुर उन का
जान उन की है जिगर उन का है तन-मन उन का
हैं वो काशाना-ए-दिल में कभी आँखों में कभी
ख़ाना तन है मिरा घर भी और आँगन उन का
है तसव्वुर जो उन्हीं का तो वो हैं पेश-ए-निगाह
हो ख़याल उन के सिवा गर तो है रहज़न उन का
हैं तुम्हीं में वो तुम अपने को तो देखो हो कौन
जिन को कहते हो कि है अर्श पे मस्कन उन का
जान उन की है हर इक जान कहाँ पर वो नहीं
दोनों आलम में यही रम्ज़ है मुज़मन उन का
बैठे बैठे वो किया करते हैं हर गुल पे नज़र
दिल-ए-आशिक़ है मगर सैर का गुलशन उन का
वो हमारे हैं हम उन के हैं उन्हीं का ये ज़ुहूर
जान उन की है यही जान भी तन-मन उन का
आ के घर में मिरे 'मर्दां' न वो जाने पाएँ
ता-क़यामत न छुटे हाथ से दामन उन का

ग़ज़ल
दिल है रौशन कि है दिल में रुख़-ए-रौशन उन का
मरदान सफ़ी