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दिल है अपना न अब जिगर अपना | शाही शायरी
dil hai apna na ab jigar apna

ग़ज़ल

दिल है अपना न अब जिगर अपना

जलील मानिकपूरी

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दिल है अपना न अब जिगर अपना
कर गई काम वो नज़र अपना

अब तो दोनों की एक हालत है
दिल सँभालूँ कि मैं जिगर अपना

मैं हूँ गो बे-ख़बर ज़माने से
दिल है पहलू में बा-ख़बर अपना

दिल में आए थे सैर करने को
रह पड़े वो समझ के घर अपना

था बड़ा मअ'रका मोहब्बत का
सर किया मैं ने दे के सर अपना

अश्क-बारी नहीं ये दर-पर्दा
हाल कहती है चश्म-ए-तर अपना

क्या असर था निगाह-ए-साक़ी में
नश्शा उतरा न उम्र भर अपना

चारा-गर दे मुझे दवा ऐसी
दर्द हो जाए चारा-गर अपना

वज़्अ-दारी की शान है ये 'जलील'
रंग बदला न उम्र भर अपना