दिल है अपना न अब जिगर अपना
कर गई काम वो नज़र अपना
अब तो दोनों की एक हालत है
दिल सँभालूँ कि मैं जिगर अपना
मैं हूँ गो बे-ख़बर ज़माने से
दिल है पहलू में बा-ख़बर अपना
दिल में आए थे सैर करने को
रह पड़े वो समझ के घर अपना
था बड़ा मअ'रका मोहब्बत का
सर किया मैं ने दे के सर अपना
अश्क-बारी नहीं ये दर-पर्दा
हाल कहती है चश्म-ए-तर अपना
क्या असर था निगाह-ए-साक़ी में
नश्शा उतरा न उम्र भर अपना
चारा-गर दे मुझे दवा ऐसी
दर्द हो जाए चारा-गर अपना
वज़्अ-दारी की शान है ये 'जलील'
रंग बदला न उम्र भर अपना
ग़ज़ल
दिल है अपना न अब जिगर अपना
जलील मानिकपूरी