दिल ग़म से तिरे लगा गए हम
किस आग से घर जला गए हम
मातम-कदा-ए-जहाँ में चूँ शम्अ'
रो रो के जिगर बहा गए हम
मानिंद-ए-हबाब इस जहाँ में
क्या आए थे और क्या गए हम
खोया गया इस में गो दिल अपना
पर यार तुझे तो पा गए हम
आता है यही तो हम को रोना
यूँ मौत का ग़म भुला गए हम
अफ़्साना-ए-सरगुज़िश्त चूँ शम्अ'
रो रो के बहुत सुना गए हम
था हम में और उस में वो जो पर्दा
सो उस को 'हसन' उठा गए हम
ग़ज़ल
दिल ग़म से तिरे लगा गए हम
मीर हसन