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दिल-ए-शोरीदा बता तेरी ये आदत क्या है | शाही शायरी
dil-e-shorida bata teri ye aadat kya hai

ग़ज़ल

दिल-ए-शोरीदा बता तेरी ये आदत क्या है

मुश्ताक़ सिंह

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दिल-ए-शोरीदा बता तेरी ये आदत क्या है
हम से ही पूछ रहा है कि मोहब्बत क्या है

न मोहब्बत न मुरव्वत न मुलाक़ात रही
गर यही दोस्ती ठहरी तो अदावत क्या है

हम न कहते थे कि यादों को सँभाले रखना
अब जो तन्हाई का आलम है तो हैरत क्या है

ग़ैर को साथ लिए आए हो हम से मिलने
फ़ित्ना-अंगेज़ी ये कैसी ये क़यामत क्या है

ज़ुल्फ़ ज़ंजीर-ए-सितम तेग़-ए-जफ़ा हैं अबरू
दिल-ए-वहशत-ज़दा अब बचने की सूरत क्या है

कैसी बे-मेहरी से रुख़्सत हुआ वो तोड़ के दिल
पूछ तो लेता तिरी आख़िरी हसरत क्या है

किस लिए ज़िंदा हूँ मैं उस से बिछड़ के 'मुश्ताक़'
मुझ से पूछो कि मिरे दिल में नदामत क्या है