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दिल-ए-पुर-ख़ूँ जो जाम है मेरा | शाही शायरी
dil-e-pur-KHun jo jam hai mera

ग़ज़ल

दिल-ए-पुर-ख़ूँ जो जाम है मेरा

मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार

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दिल-ए-पुर-ख़ूँ जो जाम है मेरा
ख़ून शर्ब-ए-मुदाम है मेरा

रिंद-ओ-आवारा नाम है मेरा
सब में ये एहतिराम है मेरा

आरिज़ ओ ज़ुल्फ़-ए-यार का ध्यान
मूनिस-ए-सुब्ह-ओ-शाम है मेरा

उम्र गुज़री कि मिस्ल-ए-नक़्श-ए-क़दम
उस की रह में क़याम है मेरा

आह इक दिन भी देख कर न कहा
ये भी कुइ नक़्श-ए-गाम है मेरा

क़ासिद उस हर्फ़-ए-ना-शुनू तक जल्द
यही जागह पयाम है मेरा

अभी आना है तो शिताबी आ
काम वर्ना तमाम है मेरा

है उसी बुत के ताक़-ए-अबरू को
जो सुजूद ओ सलाम है मेरा

गाह बे-ख़ुद हूँ गह ब-ख़ुद हर दम
कूच और ये मक़ाम है मेरा

ऐ 'जहाँदार' हूँ मैं सैद-ए-असीर
हर ख़म-ए-ज़ुल्फ़ दाम है मेरा