दिल-ए-मुज़्तर की दवा कीजिएगा
न हो मुमकिन तो दुआ कीजिएगा
बाम-ए-उल्फ़त से तो गुल ही बरसें
तल्ख़ी-ए-जाँ न सिवा कीजिएगा
बार-ए-जाँ को तो ज़रा कम कीजे
क़र्ज़ एहसाँ का अदा कीजिएगा
जाँ-ब-लब हैं जो ख़िज़ाँ में अश्जार
ज़र्द पत्तों की हवा कीजिएगा
शब-ए-फ़ुर्क़त के तक़ाज़े जो हों
दिल को दिल से न जुदा कीजिएगा
बे-निशाँ आप के दीवाने हैं
जी से गुज़रें तो पता कीजिएगा
अपनों में रात गुज़ारें 'राही'
कल सफ़र नाम-ए-ख़ुदा कीजिएगा
ग़ज़ल
दिल-ए-मुज़्तर की दवा कीजिएगा
सय्यद नवाब हैदर नक़वी राही