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दिल-ए-दीवाना ओ अंदाज़-ए-बेबाकाना रखते हैं | शाही शायरी
dil-e-diwana o andaz-e-bebakana rakhte hain

ग़ज़ल

दिल-ए-दीवाना ओ अंदाज़-ए-बेबाकाना रखते हैं

अख़्तर शीरानी

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दिल-ए-दीवाना ओ अंदाज़-ए-बेबाकाना रखते हैं
गदा-ए-मय-कदा हैं वज़-ए-आज़ादाना रखते हैं

मुझे मय-ख़ाना थराता हुआ महसूस होता है
वो मेरे सामने शरमा के जब पैमाना रखते हैं

घटाएँ भी तो बहकी जा रही हैं इन अदाओं पर
चमन में जो क़दम रखते हैं वो मस्ताना रखते हैं

ब-ज़ाहिर हम हैं बुलबुल की तरह मशहूर हरजाई
मगर दिल में गुदाज़-ए-फ़ितरत-ए-परवाना रखते हैं

जवानी भी तो इक मौज-ए-शराब-ए-तुंद-ओ-रंगीं है
बुरा क्या है अगर हम मशरब-ए-रिंदाना रखते हैं

किसी मग़रूर के आगे हमारा सर नहीं झुकता
फ़क़ीरी में भी 'अख़्तर' ग़ैरत-ए-शाहाना रखते हैं