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दिल-ए-आशुफ़्ता पे इल्ज़ाम कई याद आए | शाही शायरी
dil-e-ashufta pe ilzam kai yaad aae

ग़ज़ल

दिल-ए-आशुफ़्ता पे इल्ज़ाम कई याद आए

जमीलुद्दीन आली

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दिल-ए-आशुफ़्ता पे इल्ज़ाम कई याद आए
जब तिरा ज़िक्र छिड़ा नाम कई याद आए

तुझ से छुट कर भी गुज़रनी थी सो गुज़री लेकिन
लम्हा लम्हा सहर ओ शाम कई याद आए

हाए नौ-उम्र अदीबों का ये अंदाज़-ए-बयाँ
अपने मक्तूब तिरे नाम कई याद आए

आज तक मिल न सका अपनी तबाही का सुराग़
यूँ तिरे नामा ओ पैग़ाम कई याद आए

कुछ न था याद ब-जुज़-कार-ए-मोहब्बत इक उम्र
वो जो बिगड़ा है तो अब काम कई याद आए

ख़ुद जो लब-तिश्ना थे जब तक तो कोई याद न था
प्यास बुझते ही तही-जाम कई याद आए