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दिल दुख न जाए बात कोई बे-सबब न पूछ | शाही शायरी
dil dukh na jae baat koi be-sabab na puchh

ग़ज़ल

दिल दुख न जाए बात कोई बे-सबब न पूछ

रऊफ़ ख़ैर

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दिल दुख न जाए बात कोई बे-सबब न पूछ
ख़ाना-ब-दोश लोगों से नाम-ओ-नसब न पूछ

हद आसमाँ की पूछ ज़मीं का अदब न पूछ
किन मंज़िलों में है मिरी पर्वाज़ अब न पूछ

नान-ए-जवीं की आस भी किया शय है अब न पूछ
परदेसियों से मशग़ला-ए-रोज़-ओ-शब न पूछ

बे-घर हुए हैं दीदा-ए-बे-ख़्वाब के क़तील
अब जुगनुओं से लज़्ज़त-ए-रूदाद-ए-शब न पूछ

तेरे लिए हूँ आईना-ए-पाश-पाश में
क्या क्या है मेरे वास्ते इक तेरी छब न पूछ

प्यासे हैं जैसे एक समुंदर में रह के हम
तेरे बग़ैर ज़िंदगी करने का ढब न पूछ

मेरे लहू तरंग से ठेरा है सुर्ख़-रू
क्या क्या न रंग हैं तिरी आँखों के अब न पूछ

इक शो'ला-ए-शराब भी हैं आफ़्ताब भी
इस ज़महरीर में तिरे शादाब लब न पूछ

हम ख़ुद-शनास भी हैं ज़माना-शनास भी
इस मरहले में जान से गुज़रे हैं कब न पूछ