दिल दुख न जाए बात कोई बे-सबब न पूछ
ख़ाना-ब-दोश लोगों से नाम-ओ-नसब न पूछ
हद आसमाँ की पूछ ज़मीं का अदब न पूछ
किन मंज़िलों में है मिरी पर्वाज़ अब न पूछ
नान-ए-जवीं की आस भी किया शय है अब न पूछ
परदेसियों से मशग़ला-ए-रोज़-ओ-शब न पूछ
बे-घर हुए हैं दीदा-ए-बे-ख़्वाब के क़तील
अब जुगनुओं से लज़्ज़त-ए-रूदाद-ए-शब न पूछ
तेरे लिए हूँ आईना-ए-पाश-पाश में
क्या क्या है मेरे वास्ते इक तेरी छब न पूछ
प्यासे हैं जैसे एक समुंदर में रह के हम
तेरे बग़ैर ज़िंदगी करने का ढब न पूछ
मेरे लहू तरंग से ठेरा है सुर्ख़-रू
क्या क्या न रंग हैं तिरी आँखों के अब न पूछ
इक शो'ला-ए-शराब भी हैं आफ़्ताब भी
इस ज़महरीर में तिरे शादाब लब न पूछ
हम ख़ुद-शनास भी हैं ज़माना-शनास भी
इस मरहले में जान से गुज़रे हैं कब न पूछ

ग़ज़ल
दिल दुख न जाए बात कोई बे-सबब न पूछ
रऊफ़ ख़ैर