दिल चुरा ले गई दुज़्दीदा-नज़र देख लिया
हम न कहते थे कि उस चोर ने घर देख लिया
बंदा-पर्वर ग़म-ए-फ़ुर्क़त का असर देख लिया
दाग़-ए-दिल देख लिया दाग़-ए-जिगर देख लिया
क़द भी कम उम्र भी कम मश्क़-ए-सितम और भी कम
कर चुके क़त्ल मुझे जाइए घर देख लिया
शिकवे के साथ लगावट भी चली जाती है
जब किया कुछ तो कनखियों से इधर देख लिया
दाद-ख़्वाहों पे नई हश्र में आफ़त आई
सफ़ की सफ़ लोट गई उस ने जिधर देख लिया
क़त्ल-ए-उश्शाक़ पे लो और उठाओ ख़ंजर
झुक गई बार-ए-नज़ाकत से कमर देख लिया
न छुटा तुम से ये मय-ख़ाने का रस्ता 'बेख़ुद'
मुँह छुपाए हुए जाते हो किधर देख लिया
ग़ज़ल
दिल चुरा ले गई दुज़्दीदा-नज़र देख लिया
बेख़ुद देहलवी