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दिल बहुत तंग रहा करता है | शाही शायरी
dil bahut tang raha karta hai

ग़ज़ल

दिल बहुत तंग रहा करता है

हैदर अली आतिश

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दिल बहुत तंग रहा करता है
रंग बे-रंग रहा करता है

हुस्न में तेरे कोई ऐब नहीं
क़ुबह में दंग रहा करता है

सुल्ह की दिल से हैं याँ मस्लिहतें
वाँ सर-ए-जंग रहा करता है

मोहतसिब को तिरे मस्तानों से
ख़ौफ़-ए-सरचंग रहा करता है

दिल मिरा पी के मोहब्बत की शराब
नश्शा में भंग रहा करता है

फ़ारसी आर है मुझ मजनूँ को
नंग से नंग रहा करता है

जौहर-ए-तेग़ दिखाता है हुस्न
इश्क़ चौरंग रहा करता है

गुफ़्तनी हाल नहीं है अपना
कुछ अजब ढंग रहा करता है

हलब-ए-रुख़ में तिरे ख़ालों से
लश्कर-ए-ज़ंग रहा करता है

मंज़िल-ए-गोर के दीवानों के
सीना पर संग रहा करता है

आलम-ए-वज्द तिरे मस्तों को
बे-दफ़-ओ-चंग रहा करता है

फ़ुंदुक-ए-दस्त-ए-सनम से नादिम
गुल-ए-औरंग रहा करता है

तेरे गोश-ए-शुनवा का मुश्ताक़
हर ख़ुश-आहंग रहा करता है

बंदिश-ए-चुस्त से तेरी 'आतिश'
क़ाफ़िया तंग रहा करता है