EN اردو
दिल आइना है जौहर-ए-अक्स रू है | शाही शायरी
dil aaina hai jauhar-e-aks ru hai

ग़ज़ल

दिल आइना है जौहर-ए-अक्स रू है

मीर कल्लू अर्श

;

दिल आइना है जौहर-ए-अक्स रू है
यूँ ही तुझ से मैं हूँ यूँ ही मुझ में तू है

अगर गुल है तू जान-ए-बुलबुल भी तू है
तू हर रंग में रंग तू हर बू में बू है

मिरी ख़ाक अश्क-ए-नदामत से तर है
तयम्मुम भी करिए तो हुक्म-ए-वुज़ू है

बजा लन-तरानी है ख़ामोश हैं हम
जो उठ जाए पर्दा तो फिर गुफ़्तुगू है

तिरी ज़ुल्फ़-ए-पुरख़म का दीवाना हूँ मैं
न ज़ंजीर-ए-पा है न तौक़-ए-गुलू है

तसव्वुर में अबरू के जो मर गया हूँ
पस-ए-मर्ग काबा मिरे रू-ब-रू है

गरेबान-ए-सद-चाक है दामन-ए-गुल
न पैवंद की जा न कार-ए-रफ़ू है

तिरे मुँह को देखूँ तिरे साथ सोऊँ
ये ही हसरत-ए-दिल ये ही आरज़ू है

मैं दौरान-ए-सर से जो सर फोड़ता हूँ
न मय है न साक़ी न जाम-ए-सुबू है

छुरी क्या है तलवार भी मार क़ातिल
क़बाए-बदन को भी शौक़-ए-रफ़ू है

नहाता है ग़ैरों के हमराह क़ातिल
मिरे आब-ए-शमशीर ही ता-गुलू है

तिरे जल्वे से है दिल-ए-'अर्श' रौशन
जो वो सुब्ह-ए-सादिक़ तो ख़ुर्शीद तू है