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दीप जले तो दीप बुझाने आते हैं | शाही शायरी
dip jale to dip bujhane aate hain

ग़ज़ल

दीप जले तो दीप बुझाने आते हैं

शाज़िया अकबर

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दीप जले तो दीप बुझाने आते हैं
शहर के सारे लोग रुलाने आते हैं

दिल की कलियाँ तेरे नाम पे खिलती हैं
तारे भी अब माँग सजाने आते हैं

तुम पर ख़ुशियों के सारे ही मौसम उतरें
हम को सारे दुख बहलाने आते हैं

जाने क्या देखा था तेरी आँखों में
जाने क्यूँ अब ख़्वाब सुहाने आते हैं

मन-मंदिर में रख कर तेरी मूरत को
हम पूजा का दीप जलाने आते हैं