दीप जले तो दीप बुझाने आते हैं
शहर के सारे लोग रुलाने आते हैं
दिल की कलियाँ तेरे नाम पे खिलती हैं
तारे भी अब माँग सजाने आते हैं
तुम पर ख़ुशियों के सारे ही मौसम उतरें
हम को सारे दुख बहलाने आते हैं
जाने क्या देखा था तेरी आँखों में
जाने क्यूँ अब ख़्वाब सुहाने आते हैं
मन-मंदिर में रख कर तेरी मूरत को
हम पूजा का दीप जलाने आते हैं
ग़ज़ल
दीप जले तो दीप बुझाने आते हैं
शाज़िया अकबर