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दीदा-ए-अश्क-बार ले के चले | शाही शायरी
dida-e-ashk-bar le ke chale

ग़ज़ल

दीदा-ए-अश्क-बार ले के चले

नौशाद अली

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दीदा-ए-अश्क-बार ले के चले
हम तिरी यादगार ले के चले

दिल में तस्वीर-ए-यार ले के चले
हम क़फ़स में बहार ले के चले

ख़्वाहिश-ए-दीद ले के आए थे
हसरत-ए-इंतिज़ार ले के चले

सामने उस के एक भी न चली
दिल में बातें हज़ार ले के चले

हवस-ए-गुल में हम भी आए थे
दामन-ए-तार-तार ले के चले

जो मिरे साथ डूबना चाहे
मुझ को दरिया के पार ले के चले

तुम से अपना ही बार उठ न सका
हम ज़माने का बार ले के चले

हम न ईसा न सरमद ओ मंसूर
लोग क्यूँ सू-ए-दार ले के चले

भर के दामन में ख़ाक उस दर की
हम तो कू-ए-निगार ले के चले

ज़िंदगी मुख़्तसर मिली थी हमें
हसरतें बे-शुमार ले के चले

रूप नग़मों का दे के हम 'नौशाद'
अपने दिल की पुकार ले के चले