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ढल चुकी रात मुलाक़ात कहाँ सो जाओ | शाही शायरी
Dhal chuki raat mulaqat kahan so jao

ग़ज़ल

ढल चुकी रात मुलाक़ात कहाँ सो जाओ

जावेद कमाल रामपुरी

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ढल चुकी रात मुलाक़ात कहाँ सो जाओ
सो गया सारा जहाँ सारा जहाँ सो जाओ

सो गए वहम-ओ-गुमाँ वहम-ओ-गुमाँ सो जाओ
सो गया दर्द-ए-निहाँ दर्द-ए-निहाँ सो जाओ

कब तलक दीदा-ए-नम दीदा-ए-नम दीदा-ए-नम
कब तलक आह-ओ-फ़ुग़ाँ आह-ओ-फ़ुग़ाँ सो जाओ

आह अब टूट चला टूट चला टूट चला
आह ये रिश्ता-ए-जाँ रिश्ता-ए-जाँ सो जाओ

उठ चले दिल के मकीं दिल के मकीं दिल के मकीं
लुट गया सारा मकाँ सारा मकाँ सो जाओ