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धज्जी धज्जी जुब्बा-ओ-दस्तार होते देखना | शाही शायरी
dhajji dhajji jubba-o-dastar hote dekhna

ग़ज़ल

धज्जी धज्जी जुब्बा-ओ-दस्तार होते देखना

नश्तर ख़ानक़ाही

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धज्जी धज्जी जुब्बा-ओ-दस्तार होते देखना
'मीर' को बे-आशिक़ी भी ख़्वार होते देखना

कसरत-ए-दानिशवराँ को क़हत-ए-दानिश जानना
वुसअतों को दश्त की दीवार होते देखना

रुकने वाली है फ़िशार-ए-दम से नब्ज़-ए-इंहिराफ़
ख़ुद को अब सर-ता-बा-पा इंकार होते देखना

पीर-ए-सद-साला से सुनना क़िस्सा-ए-आसूदगी
लम्हा लम्हा ज़ीस्त को दुश्वार होते देखना

देखना लफ़्ज़ों को मअनी से मफ़र करते हुए
चुप के आलम में मिरा इज़हार होते देखना

थीं जो कल तक शब-गुज़ारी का वसीला हिज्र में
अब उन्हीं यादों को तुम आज़ार होते देखना

क़स्र-ए-कोहना हम कि कुछ महसूस तक करते नहीं
सिर्फ़ अपने आप को मिस्मार होते देखना