देते हैं मेरे जाम में देखें शराब कब
आता है माहताब के घर आफ़्ताब कब
ठहरा है इक जगह दिल-ए-ख़ाना-ख़राब कब
दरिया में घर बना के रहा है हबाब कब
जब छोड़ दी उमीद तो वो मेहरबाँ हुए
नाकामियों में बख़्त हुआ कामयाब कब
देखा है वस्ल-ए-ग़ैर में शब उन को देखिए
उल्टा असर दिखाती है ताबीर-ए-ख़्वाब कब
'कैफ़ी' को रिंद जान के जाने नहीं दिया
है बारगाह-ए-ख़ास में वो बारयाब कब
ग़ज़ल
देते हैं मेरे जाम में देखें शराब कब
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी