देर तक रौशनी रही कल रात
मैं ने ओढ़ी थी चाँदनी कल रात
एक मुद्दत के ब'अद धुँद छुट्टी
दिल ने अपनी कही सुनी कल रात
उँगलियाँ आसमान छूती थीं
हाँ मिरी दस्तरस में थी कल रात
उठता जाता था पर्दा-ए-निस्याँ
एक इक बात याद थी कल रात
ताक़-ए-दिल पे थी घुंघरूओं की सदा
इक झड़ी सी लगी रही कल रात
जुगनुओं के से लम्हे उड़ते थे
मेरी मुट्ठी में आ गई कल रात
ग़ज़ल
देर तक रौशनी रही कल रात
ज़ेहरा निगाह