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देर हो जाएगी फिर किस को सुनाई दोगे | शाही शायरी
der ho jaegi phir kis ko sunai doge

ग़ज़ल

देर हो जाएगी फिर किस को सुनाई दोगे

शहज़ाद क़मर

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देर हो जाएगी फिर किस को सुनाई दोगे
दश्त ख़ुद बोल उठेगा तो दुहाई दोगे

अब तो इस पर्दा-ए-अफ़्लाक से बाहर आ जाओ
हम भी हो जाएँगे मुंकिर तो दिखाई दोगे?

अब असीरान-ए-क़फ़स जैसे क़फ़स में भी नहीं
अब कहाँ होगी रिहाई जो रिहाई दोगे

शमएँ रौशन हैं तो क्या आलम-ए-बे-चेहरगी में
तुम कोई भी हो मगर किस को सुझाई दोगे

हम तो इज़हार के क़ाएल थे हमेशा की तरह
कब तवक़्क़ो' थी कि नाले को रसाई दोगे

क्या ख़बर थी मिरी मेहनत के सिले में तुम भी
मेरे हाथों में ये कश्कोल-ए-गदाई दोगे

हम तो इस वस्ल-ए-मुकर्रर पे भी ख़ुश थे 'शहज़ाद'
जब ये मा'लूम था इक और जुदाई दोगे