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देखो तो किस अदा से रुख़ पर हैं डाली ज़ुल्फ़ें | शाही शायरी
dekho to kis ada se ruKH par hain Dali zulfen

ग़ज़ल

देखो तो किस अदा से रुख़ पर हैं डाली ज़ुल्फ़ें

आफ़ताब शाह आलम सानी

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देखो तो किस अदा से रुख़ पर हैं डाली ज़ुल्फ़ें
जूँ मार डसती हैं दिल दिलबर की काली ज़ुल्फ़ें

चाहे हैं जिस न तिस को बाँधें गिरह में अपनी
दिल लेने को बला हैं ये पेच वाली ज़ुल्फ़ें

मिस्ल-ए-सलासिल इस में उक़दे हज़ार-हा हैं
टुक पेच-ओ-ताब से मैं देखीं न ख़ाली ज़ुल्फ़ें

मार-सियह जुदा कब रहता है गंज-ए-ज़र से
होती नहीं हैं उस के रुख़ से निराली ज़ुल्फ़ें

थी रात जो यकायक दिन देखने लगे सब
जब 'आफ़्ताब' उस ने रुख़ से उठा ली ज़ुल्फ़ें