देखें क्या अब के असीरी हमें दिखलाती है
लोग कहते हैं कि फिर फ़स्ल-ए-बहार आती है
ग़श चला आता है और आँख मुँदी जाती है
हम को क्या क्या मिरी बे-ताक़ती दिखलाती है
क्या सुना उस ने कहीं रुख़्सत-ए-गुल का मज़कूर
अंदलीब आज क़फ़स में पड़ी चिल्लाती है
ताएर-ए-रूह को परवाज़ का हर दम है ख़याल
क़फ़स-ए-तन में मिरी जान ये घबराती है
देख रोते मुझे हँस हँस कहे जाना हर दम
जान से मुझ को तो तेरी ये अदा भाती है
बज़्म-ए-हस्ती में तू बैठा है 'हवस' क्या ग़ाफ़िल
कुछ जो करना है तू कर उम्र चली जाती है
ग़ज़ल
देखें क्या अब के असीरी हमें दिखलाती है
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस