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देखे उसे हर आँख का ये काम नहीं है | शाही शायरी
dekhe use har aankh ka ye kaam nahin hai

ग़ज़ल

देखे उसे हर आँख का ये काम नहीं है

मुबारक अज़ीमाबादी

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देखे उसे हर आँख का ये काम नहीं है
कुछ खेल तमाशा-ए-लब-ए-बाम नहीं है

मैं मो'तरिफ़-ए-जुर्म हूँ जो चाहो सज़ा दो
इल्ज़ाम-ए-तमन्ना कोई इल्ज़ाम नहीं है

वो सुब्ह भी होती है शब-ए-तार से पैदा
जिस को ख़तर-ए-तीरगी-ए-शाम नहीं है

जो दिल है वो लबरेज़-ए-तमन्ना है 'मुबारक'
इस जाम से अच्छा तो कोई जाम नहीं है