देख तू बे-रहम आशिक़ नीं तुझे छोड़ा नहीं
किस क़दर बे-रूइयाँ देखीं प मुँह मोड़ा नहीं
एक चस्पाँ है तुझी पर ख़ुश-नुमाई की क़बा
दूसरा कुइ जामा-ज़ेबों में तिरा जोड़ा नहीं
लट-पटे सज नीं तिरे दिल कूँ किया है लोट-पोट
वर्ना आलम बीच टुक बंदों का कुछ तोड़ा नहीं
देखना शीरीं का उस कूँ सख़्त लागा संग में
बे-सबब फ़रहाद नीं पत्थर सीं सर फोड़ा नहीं
आदमी दरकार नहिं सरकार में हैवान ढूँढ
कौन बूझे याँ सिपाही के तईं घोड़ा नहीं
जीव ने मरने में हक़ ऊपर तवक्कुल है उसे
'आबरू' नीं ज़ख़्म के खाने में हाथ ओड़ा नहीं
ग़ज़ल
देख तू बे-रहम आशिक़ नीं तुझे छोड़ा नहीं
आबरू शाह मुबारक