देख कर मय मुँह में पानी शैख़ के भर आएगा
चीज़ अच्छी देखेगा मुफ़्लिस का जी ललचाएगा
शो'ला भड़का कर रहेगी ये दबी आग एक दिन
गर वो ठंडी गर्मियों से दिल मिरा सुलगाएगा
काकुल-ए-पुरपेच से हासिल हुआ ये मू-ब-मू
हाथ को जो खींच लेगा पाँव को फैलाएगा
ज़ब्त-ए-गिर्या से है नुक़साँ क़स्र-ए-तन के वास्ते
बैठ ही जाएगा घर पानी अगर मर जाएगा
चशम-ए-बद्दूर आँख ऐसी है नशीली यार की
मोहतसिब के मुँह में पानी देख कर भर आएगा
इश्वा चालाकी करिश्मा नाज़ ग़म्ज़ा यार का
गरचे है क़हर-ए-ख़ुदा पर दिल को मेरे भाएगा
ले चली गर वहशत-ए-दिल जानिब-ए-सहरा 'वक़ार'
रंज-ओ-हिरमाँ पाँव दर पर यार के फैलाएगा

ग़ज़ल
देख कर मय मुँह में पानी शैख़ के भर आएगा
किशन कुमार वक़ार