दयार-ए-शाम न बुर्ज-ए-सहर में रौशन हूँ
मैं एक उम्र से अपने ही घर में रौशन हूँ
हुजूम-ए-शब-ज़दगाँ से फ़रार हो कर आज
जमाल-ए-शोला-ए-शम-ए-सहर में रौशन हूँ
मैं मुंतज़िर हूँ तो फिर मुंतज़र भी आएगा
चराग़-ए-जाँ की तरह रह-गुज़र में रौशन हूँ
न जाने कब मिरी हस्ती धुआँ धुआँ हो जाए
मैं एक साअत-ए-ना-मोतबर में रौशन हूँ
मिरे हरीफ़-ए-सुख़न कुछ तुझे ख़बर भी है
तिरे सबब से हिसार-ए-हुनर में रौशन हूँ
निज़ाम-ए-गर्दिश-ए-दौराँ मिरा मुक़द्दर है
मैं इक सितारे की सूरत सफ़र में रौशन हूँ
अकेला जान के ख़ुद को न हो उदास कि मैं
मिसाल-ए-अश्क तिरी चश्म-ए-तर में रौशन हूँ
मुझे तलाश न कर मेरी ज़ात में 'शहबाज़'
बहुत दिनों से जहान-ए-दिगर में रौशन हूँ
ग़ज़ल
दयार-ए-शाम न बुर्ज-ए-सहर में रौशन हूँ
शहबाज़ नदीम ज़ियाई