दयार-ए-शाहिद-ए-बिल्क़ीस-अदा से आया हूँ
मैं इक फ़क़ीर हूँ शहर-ए-सबा से आया हूँ
जहान-ए-नौ की तलब और इस ख़राबे में
सवाद-ए-इस्तख़्र-ओ-नैनवा से आया हूँ
शब-ए-स्याह-ए-ख़िज़ाँ के सुमूम-ओ-सर-सर तक
निगार-ख़ाना-ए-सुब्ह-ओ-सबा से आया हूँ
अभी कहाँ है मुझे नौहा-ओ-नवा का शुऊ'र
कि एक नाहिया-ए-बे-नवा से आया हूँ
मिरे रुमूज़ का इरफ़ाँ किसे नसीब कि मैं
सरोश-ए-रूह-ए-अज़ल हूँ समा से आया हूँ
दमक रही है ज़मान-ओ-मकाँ की पेशानी
सितारा-ए-अबदी हूँ ख़ला से आया हूँ
तुम्हारे ग़ुंचा-ओ-गुल से ग़रज़ नहीं मुझ को
इधर इशारा-ए-बाद-ए-सबा से आया हूँ
ग़ज़ल
दयार-ए-शाहिद-ए-बिल्क़ीस-अदा से आया हूँ
रईस अमरोहवी