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दौलत-ए-हुस्न की भी है क्या लूट | शाही शायरी
daulat-e-husn ki bhi hai kya luT

ग़ज़ल

दौलत-ए-हुस्न की भी है क्या लूट

हैदर अली आतिश

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दौलत-ए-हुस्न की भी है क्या लूट
आँखों को पड़ गई है लूटा-लूट

चल रही है दिला हवा-ए-बहार
लाला फूला है दाग़-ए-सौदा लूट

सामने तेरे जो पड़े ऐ तुर्क
उस में का'बा हो या कलीसा लूट

चार दिन है बहार ऐ बुलबुल
ज़र-ए-गुल का हज़ार तोड़ा लूट

सफ़-ए-मिज़्गाँ से कह रही है वो चश्म
दिल मिलें जितने बे-तहाशा लूट

सर्फ़-ए-अल्लाह माल-ए-दुनिया कर
मर्द है कुछ तो बहर-ए-उक़्बा लूट

साफ़ दिल हो तो जल्वा-गर हो यार
आइना हो तो हो तमाशा लूट

नेमत-ख़्वान-ए-हुस्न जो मिल जाए
ये समझ ले है मन्न-ओ-सल्वा लूट

गौहर-ए-आबला हुए तो चले
लेंगे दीवानो ख़ार-ए-सहरा लूट

जानते हैं कि फ़ौज-ए-जंगी से
नहीं सरदार फेर लेता लूट

काम मर्दों का है ये ऐ 'आतिश'
रखती है जान का भी खटका लूट