EN اردو
दस्त-ओ-पा हैं सब के शल इक दस्त-ए-क़ातिल के सिवा | शाही शायरी
dast-o-pa hain sab ke shal ek dast-e-qatil ke siwa

ग़ज़ल

दस्त-ओ-पा हैं सब के शल इक दस्त-ए-क़ातिल के सिवा

सुरूर बाराबंकवी

;

दस्त-ओ-पा हैं सब के शल इक दस्त-ए-क़ातिल के सिवा
रक़्स कोई भी न होगा रक़्स-ए-बिस्मिल के सिवा

मुत्तफ़िक़ इस पर सभी हैं क्या ख़ुदा क्या नाख़ुदा
ये सफ़ीना अब कहीं भी जाए साहिल के सिवा

मैं जहाँ पर था वहाँ से लौटना मुमकिन न था
और तुम भी आ गए थे पास कुछ दिल के सिवा

ज़िंदगी के रंग सारे एक तेरे दम से थे
तू नहीं तो ज़िंदगी क्या है मसाइल के सिवा

उस की महफ़िल आईना-ख़ाना तो थी लेकिन 'सुरूर'
सारे आईने सलामत थे मिरे दिल के सिवा