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दश्त-ए-दिल में सराब ताज़ा हैं | शाही शायरी
dasht-e-dil mein sarab taza hain

ग़ज़ल

दश्त-ए-दिल में सराब ताज़ा हैं

अमजद इस्लाम अमजद

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दश्त-ए-दिल में सराब ताज़ा हैं
बुझ चुकी आँख ख़्वाब ताज़ा हैं

दास्तान-ए-शिकस्त-ए-दिल है वही
एक दो चार बाब ताज़ा हैं

कोई मौसम हो दिल-गुलिस्ताँ में
आरज़ू के गुलाब ताज़ा हैं

दोस्ती की ज़बाँ हुई मतरूक
नफ़रतों के निसाब ताज़ा हैं

आगही के हमारी आँखों पर
जिस क़दर हैं अज़ाब ताज़ा हैं

ज़ख़्म-दर-ज़ख़्म दिल के खाते में
दोस्तों के हिसाब ताज़ा हैं

सर पे बूढ़ी ज़मीन के 'अमजद'
अब के ये आफ़्ताब ताज़ा हैं