EN اردو
दस अक़्ल दस मक़ूले दस मुद्रिकात तीसों | शाही शायरी
das aql das maqule das mudrikat tison

ग़ज़ल

दस अक़्ल दस मक़ूले दस मुद्रिकात तीसों

इंशा अल्लाह ख़ान

;

दस अक़्ल दस मक़ूले दस मुद्रिकात तीसों
तेरे ही ज़िक्र में हैं ऐ पाक-ज़ात तीसों

नो आसमाँ ख़ुर-ओ-मह सातों तबक़ ज़मीं के
रूह-ओ-हवास-ए-ख़मसा और शश-जहात तीसों

बारा बुरूज चौदह मासूम चार उंसुर
ज़ाहिर करें हैं तेरी लाखों सिफ़ात तीसों

सी-पारहा-ए-दिल को रखियो मुहाफ़िज़त से
ऐ मेरी जाँ हैं तेरी हिफ़्ज़-ए-हयात तीसों

माह-ए-गुज़िश्ता का हाल 'इंशा' कहूँ सो क्यूँकर
मर मर बसर किए हैं दिन और रात तीसों