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डरता हूँ मोहब्बत में मिरा नाम न होवे | शाही शायरी
Darta hun mohabbat mein mera nam na howe

ग़ज़ल

डरता हूँ मोहब्बत में मिरा नाम न होवे

अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ

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डरता हूँ मोहब्बत में मिरा नाम न होवे
दुनिया में इलाही कोई बदनाम न होवे

शमशीर कोई तेज़ सी लेना मिरे क़ातिल
ऐसी न लगाना कि मिरा काम न होवे

गर सुब्ह को मैं चाक गरेबान दिखाऊँ
ऐ ज़िंदा-दिलाँ हश्र तलक शाम न होवे

आता है मिरी ख़ाक पे हमराह-ए-रक़ीबाँ
यानी मुझे तुर्बत में भी आराम न होवे

जी देता है बोसे की तवक़्क़ो पे 'फ़ुग़ाँ' तू
टुक देख ले सौदा ये तिरा ख़ाम न होवे