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दर्द की धूप ढले ग़म के ज़माने जाएँ | शाही शायरी
dard ki dhup Dhale gham ke zamane jaen

ग़ज़ल

दर्द की धूप ढले ग़म के ज़माने जाएँ

ज़िया ज़मीर

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दर्द की धूप ढले ग़म के ज़माने जाएँ
देखिए रूह से कब दाग़ पुराने जाएँ

हम को बस तेरी ही चौखट पे पड़े रहना है
तुझ से बिछ्ड़ें न किसी और ठिकाने जाएँ

अपनी दीवार-ए-अना आप ही कर के मिस्मार
अपने रूठों को चलो आज मनाने जाएँ

जाने क्या राज़ छुपा है तिरी सालारी में
तू जहाँ जाए तिरे पीछे ज़माने जाएँ

रहें गुमनाम तो बस तुझ से ही मंसूब रहें
जाने जाएँ तो तिरे नाम से जाने जाएँ

देख पाएँगे उन आँखों में उदासी कैसे
अपने दुखड़े न 'ज़िया' उन को सुनाने जाएँ