दर्द की धूप ढले ग़म के ज़माने जाएँ 
देखिए रूह से कब दाग़ पुराने जाएँ 
हम को बस तेरी ही चौखट पे पड़े रहना है 
तुझ से बिछ्ड़ें न किसी और ठिकाने जाएँ 
अपनी दीवार-ए-अना आप ही कर के मिस्मार 
अपने रूठों को चलो आज मनाने जाएँ 
जाने क्या राज़ छुपा है तिरी सालारी में 
तू जहाँ जाए तिरे पीछे ज़माने जाएँ 
रहें गुमनाम तो बस तुझ से ही मंसूब रहें 
जाने जाएँ तो तिरे नाम से जाने जाएँ 
देख पाएँगे उन आँखों में उदासी कैसे 
अपने दुखड़े न 'ज़िया' उन को सुनाने जाएँ
        ग़ज़ल
दर्द की धूप ढले ग़म के ज़माने जाएँ
ज़िया ज़मीर

