दर्द कब दिल में मेहरबाँ न रहा
हाँ मगर क़ाबिल-ए-बयाँ न रहा
हम जो गुलशन में थे बहार न थी
जब बहार आई आशियाँ न रहा
ग़म गराँ जब न था गराँ था मुझे
जब गराँ हो गया गराँ न रहा
दोस्तों का करम मआ'ज़-अल्लाह
शिकवा-ए-जौर-ए-दुश्मनाँ न रहा
बिजलियों को दुआएँ देता हूँ
दोश पर बार-ए-आशियाँ न रहा
ग़ज़ल
दर्द कब दिल में मेहरबाँ न रहा
कलीम आजिज़