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दर्द कब दिल में मेहरबाँ न रहा | शाही शायरी
dard kab dil mein mehrban na raha

ग़ज़ल

दर्द कब दिल में मेहरबाँ न रहा

कलीम आजिज़

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दर्द कब दिल में मेहरबाँ न रहा
हाँ मगर क़ाबिल-ए-बयाँ न रहा

हम जो गुलशन में थे बहार न थी
जब बहार आई आशियाँ न रहा

ग़म गराँ जब न था गराँ था मुझे
जब गराँ हो गया गराँ न रहा

दोस्तों का करम मआ'ज़-अल्लाह
शिकवा-ए-जौर-ए-दुश्मनाँ न रहा

बिजलियों को दुआएँ देता हूँ
दोश पर बार-ए-आशियाँ न रहा