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दर्द जब से दिल-नशीं है इश्क़ है | शाही शायरी
dard jab se dil-nashin hai ishq hai

ग़ज़ल

दर्द जब से दिल-नशीं है इश्क़ है

तौक़ीर तक़ी

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दर्द जब से दिल-नशीं है इश्क़ है
इस मकाँ में कुछ नहीं है इश्क़ है

देख दश्त-ए-याद का एजाज़ देख
मैं कहीं हूँ तू कहीं है इश्क़ है

थक के बैठा हूँ जो कुंज-ए-ज़ात में
मेहरबाँ कोई नहीं है इश्क़ है

जो अज़ल से हिज्रती हैं अश्क हैं
जो इन अश्कों में मकीं है इश्क़ है

ऐ सराब-ए-जब्र-ओ-इस्तिबदाद सुन
ये जो प्यासों का यक़ीं है इश्क़ है

कल जहाँ दीवार ही दीवार थी
अब वहाँ दर है जबीं है इश्क़ है

ख़्वाब ही में देख ले ताबीर-ए-ख़्वाब
कौन ऐसा पेश-बीं है इश्क़ है

जीते-जी दुश्वार कितना था सफ़र
अब न दुनिया है न दीं है इश्क़ है

रंज-ओ-ग़म की सुरमई चादर 'तक़ी'
जब से बाला-ए-ज़मीं है इश्क़ है