दर्द जाता नज़र नहीं आता
हाल अच्छा नज़र नहीं आता
इस ख़राबात में ख़राब न हो
कोई ऐसा नज़र नहीं आता
तुम से क्या क्या कहूँ मोहब्बत में
मुझ को क्या क्या नज़र नहीं आता
वही अंधे हैं अक़्ल के जिन को
ऐब अपना नज़र नहीं आता
दिल में जब तक है रश्क-ए-ग़ैर 'अज़ीज़'
कोई तन्हा नज़र नहीं आता
ग़ज़ल
दर्द जाता नज़र नहीं आता
अज़ीज़ हैदराबादी