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दर्द-ए-हयात-ए-इश्क़ है नग़्मा-ए-जाँ-गुदाज़ में | शाही शायरी
dard-e-hayat-e-ishq hai naghma-e-jaan-gudaz mein

ग़ज़ल

दर्द-ए-हयात-ए-इश्क़ है नग़्मा-ए-जाँ-गुदाज़ में

राम कृष्ण मुज़्तर

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दर्द-ए-हयात-ए-इश्क़ है नग़्मा-ए-जाँ-गुदाज़ में
ग़र्क़ है सारी काएनात लज़्ज़त-ए-सोज़-ओ-साज़ में

शौक़ का हाल क्या हुआ दिल का मआल क्या हुआ
एक जहान-ए-राज़ है दीदा-ए-दिल-नवाज़ में

कैफ़-ए-ख़ुद-आगही भी है आलम-ए-बे-ख़ुदी भी है
शौक़-ए-सुपुर्दगी भी है आज निगाह-ए-नाज़ में

पिछले पहर जो हुस्न के रुख़ से हटें ख़ुनुक लटें
जाग उठा नया फ़ुसूँ चश्म-ए-फुसूँ-तराज़ में

आह वो आलम-ए-शबाब हाए वो नश्शा-ए-शराब
झलका हुआ वो रंग-ए-ख़्वाब नर्गिस-ए-नीम-बाज़ में