दर्द-ए-हयात-ए-इश्क़ है नग़्मा-ए-जाँ-गुदाज़ में
ग़र्क़ है सारी काएनात लज़्ज़त-ए-सोज़-ओ-साज़ में
शौक़ का हाल क्या हुआ दिल का मआल क्या हुआ
एक जहान-ए-राज़ है दीदा-ए-दिल-नवाज़ में
कैफ़-ए-ख़ुद-आगही भी है आलम-ए-बे-ख़ुदी भी है
शौक़-ए-सुपुर्दगी भी है आज निगाह-ए-नाज़ में
पिछले पहर जो हुस्न के रुख़ से हटें ख़ुनुक लटें
जाग उठा नया फ़ुसूँ चश्म-ए-फुसूँ-तराज़ में
आह वो आलम-ए-शबाब हाए वो नश्शा-ए-शराब
झलका हुआ वो रंग-ए-ख़्वाब नर्गिस-ए-नीम-बाज़ में
ग़ज़ल
दर्द-ए-हयात-ए-इश्क़ है नग़्मा-ए-जाँ-गुदाज़ में
राम कृष्ण मुज़्तर