दर्द दरमाँ से कम तो क्या होगा
यही होगा कि कुछ सिवा होगा
किस क़यामत का सामना होगा
बुझ गया दिल तो आह क्या होगा
खुल गए हैं ख़ुशी से सब के दहन
ज़ख़्म-ए-दिल कोई छू गया होगा
हुस्न को चाहे और दूर रहे
कोई हम सा भी पारसा होगा
मौत आएगी और न आएगी
तुम न आए तो और क्या होगा
दिल पे अंगारे से बरसते हैं
ध्यान राहत का आ गया होगा
शाम ही से है दिल की हालत ग़ैर
सुब्ह तक तो न जाने क्या होगा
लाख दे रंज लाख ज़ुल्म करे
दिलरुबा फिर भी दिलरुबा होगा
वो मुझे मिल गए ज़हे ताला
न मिला दिल से दिल तो क्या होगा
ये भी कोई कराहने की है बात
कुछ 'जिगर' दर्द बढ़ गया होगा
मिट गया दिल जिगर क़रार नहीं
इस मोहब्बत का हश्र क्या होगा
रुख़ जो उस ने 'जिगर' से फेर लिया
दाग़ दिल का दिखा दिया होगा
ग़ज़ल
दर्द दरमाँ से कम तो क्या होगा
जिगर बरेलवी