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दर-ए-काएनात जो वा करे उसी आगही की तलाश है | शाही शायरी
dar-e-kaenat jo wa kare usi aagahi ki talash hai

ग़ज़ल

दर-ए-काएनात जो वा करे उसी आगही की तलाश है

अमजद इस्लाम अमजद

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दर-ए-काएनात जो वा करे उसी आगही की तलाश है
मुझे रौशनी की तलाश थी मुझे रौशनी की तलाश है

ग़म-ए-ज़िंदगी के फ़िशार में तिरी आरज़ू के ग़ुबार में
इसी बे-हिसी के हिसार में मुझे ज़िंदगी की तलाश है

ये जो सरसरी सी नशात है ये तो चंद लम्हों की बात है
मिरी रूह तक जो उतर सके मुझे उस ख़ुशी की तलाश है

ये जो आग सी है दबी दबी नहीं दोस्तो मिरे काम की
वो जो एक आन में फूँक दे उसी शोलगी की तलाश है

ये जो साख़्ता से हैं क़हक़हे मिरे दिल को लगते हैं बोझ से
वो जो अपने आप में मस्त हो मुझे उस हँसी की तलाश है

ये जो मेल-जोल की बात है ये जो मज्लिसी सी हयात है
मुझे इस से कोई ग़रज़ नहीं मुझे दोस्ती की तलाश है