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दम भर की ख़ुशी बाइस-ए-आज़ार भी होगी | शाही शायरी
dam bhar ki KHushi bais-e-azar bhi hogi

ग़ज़ल

दम भर की ख़ुशी बाइस-ए-आज़ार भी होगी

रशीद क़ैसरानी

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दम भर की ख़ुशी बाइस-ए-आज़ार भी होगी
इस राह में साया है तो दीवार भी होगी

सदियों से जहाँ जिस के तआ'क़ुब में रवाँ है
वो साअत-ए-सद-रंग गिरफ़्तार भी होगी

रंगों की रिदा ओढ़ के इस रेग-ए-रवाँ पर
उतरी है जो शब वो शब-ए-दीदार भी होगी

कहता है मिरे कान में ख़ुश्बू का पयामी
मुँह-बंद कली माएल-ए-गुफ़्तार भी होगी

साए से लिपट जाएँगे क़दमों से ब-हर-गाम
रुस्वाई कुछ अपनी सर-ए-बाज़ार भी होगी

ऐ शब न कटेगी तिरे सीने की स्याही
इक शोख़ किरन मुफ़्त गुनहगार भी होगी

सुनते हैं कि हर सुब्ह के हाथों में 'रशीद' अब
इक ज़हर में डूबी हुई तलवार भी होगी