दार-ओ-ज़िन्दाँ भी जाम-ओ-चंग भी है
ज़िंदगी बे-कराँ भी तंग भी है
अहल-ए-महफ़िल हों यूँ न अफ़्सुर्दा
दामन-ए-शब में कैफ़-ओ-रंग भी है
तुझे खोने का दिल को ग़म भी नहीं
तुझे पाने की इक उमंग भी है
कौन जाने कि मर्ग है सामाँ
बाइस-ए-हिफ़्ज़ नाम-ओ-नंग भी है
अल्लाह अल्लाह सियासत-ए-हाज़िर
सुल्ह के साथ साथ जंग भी है
ग़ज़ल
दार-ओ-ज़िन्दाँ भी जाम-ओ-चंग भी है
ऐन सलाम