EN اردو
दार-ओ-ज़िन्दाँ भी जाम-ओ-चंग भी है | शाही शायरी
dar-o-zondan bhi jam-o-chang bhi hai

ग़ज़ल

दार-ओ-ज़िन्दाँ भी जाम-ओ-चंग भी है

ऐन सलाम

;

दार-ओ-ज़िन्दाँ भी जाम-ओ-चंग भी है
ज़िंदगी बे-कराँ भी तंग भी है

अहल-ए-महफ़िल हों यूँ न अफ़्सुर्दा
दामन-ए-शब में कैफ़-ओ-रंग भी है

तुझे खोने का दिल को ग़म भी नहीं
तुझे पाने की इक उमंग भी है

कौन जाने कि मर्ग है सामाँ
बाइस-ए-हिफ़्ज़ नाम-ओ-नंग भी है

अल्लाह अल्लाह सियासत-ए-हाज़िर
सुल्ह के साथ साथ जंग भी है