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दानिश-ओ-फ़हम का जो बोझ सँभाले निकले | शाही शायरी
danish-o-fahm ka jo bojh sambhaale nikle

ग़ज़ल

दानिश-ओ-फ़हम का जो बोझ सँभाले निकले

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

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दानिश-ओ-फ़हम का जो बोझ सँभाले निकले
उन के अज़हान पे अफ़्कार पे जाले निकले

मैं ये समझा कि कोई नर्म ज़मीं आ पहूँची
ग़ौर से देखा तो वो पाँव के छाले निकले

ज़ख़्म खा कर ये थी ख़ुश-फ़हमी कि मर जाएँगे
दोस्तो हम तो बड़े हौसले वाले निकले

दिल टटोला शब-ए-तन्हाई तो महसूस हुआ
हम भी ऐ दोस्त तिरे चाहने वाले निकले

आज के दौर के सुक़रात पे क्या होगा असर
अपनी ही ज़ात में जो ज़हर के प्याले निकले

फन को फैलाए जो ये आज खड़े हैं 'जावेद'
आस्तीं के ये मिरी अपने ही पाले निकले